रविवार, 20 फ़रवरी 2011

शायद 
सोच बदल चुकी है .
जज्बात ,
हो चुके हैं बाल पेन जैसे..
रिफिल नयी , 
हर पन्ने से पहले.

पर पहले नहीं था ऐसा.
मुझे याद है,
डायरी में उसी एक 
फाउन्टेन पेन से लिखना
बार बार एक ही रंग की 
स्याही भर कर.