रविवार, 12 दिसंबर 2010

मुझे कल्पना करने दो 
आसमान छूने की. 

फैलाने की अपने परों को
इस असीम ,नीलाभ आकाश में.

चलने की उन असंख्य,
शीतल अभ्रों पर.

देखने की स्वयं को,
उन अनंत ऊंचाइयों के पार.

उड़ने की सभी पक्षियों के साथ 
दूर तक.
मुझे जीने दो...

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