शनिवार, 29 अगस्त 2009

चलो शुरुआत करें ...

कभी पढ़ा था ....
मंजिलें मिलती हैं उनको ...
जब परिंदे पर खोलते हैं।
अक्सर खामोश रहते हैं वो,
जिनके हुनर बोलते हैं...

खामोशी एक जरिया है ख़ुद तक पहुँचने का। जब आस पास का शोर इतना बढ़ जाए कीइंसान ख़ुद के मन् की आवाज़ न सुन सके तो सिर्फ़ यही माध्यम रह जाता है .... खामोशी।

इसी खामोशी से निकले कुछ अंतर्द्वंद सहेज कर रख लेती हूँ अपनी डायरी के पन्नो में... क्या पता किसी खामोश पल में ख़ुद से संवाद ही न बन पाये तब ये ही पन्ने सुनायेंगे मुझे मेरी आवाज़॥

अपनी ज़िन्दगी के कुछ किस्से कुछ कवितायें इस ब्लॉग के ज़रिये फ़िर से जीवान्वित होते देखन चाहती हूँ ।

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