रविवार, 30 अगस्त 2009

मैं अनाथ

मैं .....
अकेला, निहत्था , अनाथ।
मैंने दुनिया से,
और दुनिया ने मुझ से
न कुछ लिया
न दिया...
मुझे अपने साथ ही
हर दिन बीतना होगा
उगना होगा
सुबह के साथ
और भुला देना होगा
उन सभी
तथाकथित दुर्व्यवहारों को...
और यादों को....

क्योंकि अकेले जीना
आसान हो जाएगा
यदि मैं उन के बारे में
सोचना छोड़ सकूँ
यदि मैं चुप रह सकूँ।

क्योंकि मुझे पता है
कि मेरी आवाज़
किसी को
सुनाई नही देगी
और अगर सुनाई दी भी तो
अनसुनी कर दी जायेगी
या भुला दी जायेगी।

मैं पलायनवादी नहीं हूँ...
पर मैं विश्वास करता हूँ
अकेले जीने में
और शायद इसीलिए
मैं ख़ुद के साथ हूँ।




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