अक्सर आकाश गंगा की
सूनसान किरणों पर खड़े होकर जब मैंने अथाह शून्य में
अनंत ,प्रदीप्त सूर्यों को
कोहरे की गुफाओं में
पंख टूटे जुगनूओं की तरह
रेंगते देखा है
तो मैं भयभीत होकर
लौट आया हूँ।
-धर्मवीर 'भरती'
ye shabd ... jo bikhartey hain mere haathon se, kaagaz par. kuch mere hain bhi, kuch nahin bhi. jo mere hain ,woh mujhse hain. jo mere nahi.... wo sab uda ke, utha ke, bator ke, laayi hai hawa na jaane kahan se....
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