गुरुवार, 22 अक्तूबर 2009

अक्सर आकाश गंगा की
सूनसान किरणों पर खड़े होकर
जब मैंने अथाह शून्य में
अनंत ,प्रदीप्त सूर्यों को
कोहरे की गुफाओं में
पंख टूटे जुगनूओं की तरह
रेंगते देखा है
तो मैं भयभीत होकर
लौट आया हूँ।
-धर्मवीर 'भरती'

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें