गुरुवार, 22 अक्तूबर 2009

विवश..

मानव ...
सृष्टा की अमूल्य रचना,
अपनी सीमाओं को पराजित करता
एक आजाद जीव।
जो बड़े से बड़े आकाश को
भी भेद सकता है,
गहरी से गहरी सुरंग
बना सकता है
धरती के गर्भ में।
फ़िर यह कैसी विवशता है ......
कि वाही मानव्
थाह नही पा सकता
अगले मानव् के हिय की।
शायद यही है
मानव् ,तुच्छ मानव्
होने की
विवशता ..... ।

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