उस राह के ,
उस मोड़ पर,
जहाँ से तुम्हारा सफर
शुरू हुआ था ,
किसी की मंज़िल
वहीँ है अब तक ।
जिसे तुम छोड़ कर
बहुत आगे निकल चुके हो
वह जड़ हो चुकी है
स्तब्ध रह गई है
वहीँ पर अब तक ।
तुम्हारे जीवन नें
अनेक मौसम देखे होंगे ,
कुछ शीत , कुछ बरखा और
कुछ वसंत के
उसके जीवन में लेकिन
पतझर है अबतक ।
तुमने अपना भाग्य
स्वयं अपने हाथों बनाया
पर इस सत्य से तो
तुम भी अनभिज्ञ हो कि
लिखा है किसी और का भाग्य भी
तुमने ही अनजाने में...
जो तुम्हारी प्रतीक्षा को
नीयति मान कर
जी रही है अब तक ।
तो वापस जाओ और
उस पाषाण शिला को
जीवान्वित कर दो ,
शायद उसमें
जीवन जीने के आसार
कुछ बचे हो अब तक।
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